आँचल
- Mrityunjay Kashyap
- Aug 19, 2024
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सब सामर्थ्य सबला तेरे करतल,
शक्ति स्वरूपा तू आदि प्रबल,
लौकिक रूप अलौकिक शृंगार,
सौन्दर्य सिरमौर हो ये आंचल!
जब शिशु नयन बहते अश्रुजल,
मात हृदय वन दहके दावानल,
पोंछ उन्हें मन को करता शांत,
ममता की सीमारेखा ये आँचल!
पकड़ जिसे चलता बालक चंचल,
बने स्वावलंबी, निर्भीक व प्रांजल,
ताग-ताग जिसका वात्सल्य युक्त,
बाल-लता की काष्ठ ये आँचल!
प्रस्वेद आप्लावित कोमल कुन्तल,
आतप में ताम्र सम होते मुखमंडल,
क्लांत तन मन का आनन्द विश्राम,
सबके प्रति छत्रक बनती ये आँचल!
उपरांत सप्त भाँवर समक्ष अनल,
विदा होती तनया नयन सजल,
धन-धान्य रूपक खोंइछा भरती,
नैहर स्मृतियों की थाति ये आँचल!
मात-पिता की याद हिय विकल,
अश्रु सागर से मिटे जब काजल,
समेटता है विरह पीड़ा अगाध,
कुम्भज ऋषि सरिस ये आँचल!
श्रांत कांत को परोसने अन्न-जल,
मांजकर रखी हुई थाल पीतल,
पोछ लाती भार्या निज करारविंद,
कुटुंब हेतू अक्षयपात्र ये आँचल!
त्रिबिध समीर मंद सुरभित शीतल,
छाए हो मानों मधुमास के बादल,
दांपत्य जीवन के गगन में उड़ती
प्रेम पतंग रेशमी डोर ये आँचल!
सुहागन का आशीष अहिवात अटल,
सम्माने त्रय कुल परम्पराएँ सकल,
कदापि ना समझना इसको बंधन,
गौरव, गरिमा का प्रतीक ये आँचल!
क्यों हुआ बोझ यह आजकल,
सदियों की रीतियाँ क्यों विफल,
तब छोड़ते होंगे संस्कार भी संग,
जब छोड़ता होगा कोई ये आँचल!
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