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Writer's pictureMayank Kumar

घाटी


जिस धरती पर सिंधु की बहती धारा अविरल है,

जहाँ मनोहर सुंदरता का वरदान सदा सकल है,

हिम से ढका तलरूप जहाँ नीचा, ऊँचा, समतल, गहरा है,

जहाँ स्वयं विशाल, हिमालय , नगपति का पेहरा है ll


जहाँ माँ वैष्णो की शरण में, प्रेम व भक्ति प्रखर है,

जहाँ स्वयं पिनाकी, बर्फानि, नीलकंठ का घर है

जहाँ अलची, बासगो और हेमिस की फैली शांति है

परवरदिगार का द्वार जहाँ ,यहाँ कि कण-कण में क्रांति है ll


वीर पोरस की यह भूमि,

भारत का ताज यहाँ की माटी है,

सिंधु झेलम जिसकी आरती करती

यहीं कश्मीर की घाटी है ll


परंतु...

सीने पर गोली दागने वालों को, हम भगवान बनाते है,

दहशतगर्दो, पत्थरबाज़ो के गुणगान जब गाते हैं,

इसलिए कश्मीर के नक्शे पर आज बारूदो के ढेर पड़े हैं,

इतिहासो से क्या सीखा, हम जहाँ खड़े थे वही खड़े है ll


संताप में डूबी है घाटी

संतापी यहाँ भगवान है

संतापन यहाँ की क्रिया प्रमुख

अभिसंताप ही उत्थान हैll


सहस्त्र पुंज ऋचा, वेद, कालभूमि, जो जप की है

सहस्त्र पुंज धरा प्रबल भास्कर तनय के तप की है ll

सहस्त्र पुंज आतंकी अभिनंदन का जहाँ पर वंदन है

सहस्त्र पुंज रक्त चंदन शोणित जन गण मन का क्रंदन है ll

सहस्त्र पुंज चुप्पीयाँ जहाँ है मरघट की लाचारी में

सहस्त्र पुंज आतंकी आहटे छिपी मासूम किलकारी मेंll


जान लुटाती सेना पर पत्थरबाजी करते हैं

प्रखर भारतीय वीरों पर मूर्ख रंगबाजी करते हैं

और प्रतिकार वार से दूर सैनिक रहते इसे कमज़ोरी समझते हैं

इन्हे पालना है ज़रूरी वतन की मजबूरी समझते हैं ll


मैदानो में चरती भेड़े हैं, घर - घर में जलती भट्टी हैं

सत्ता के कंधो पर पशमीना, उनकी आँखो पर पट्टी है

झेलम की पावन समर भूमि देखो लहूलुहान हैं

सेना शत्रु परम इनकी, आतंकी भगवान हैं ll


प्रतिदिन निरंतर घाटी में समस्या बढ़ती दिखायी पड़ती हैं

कुटिल पड़ोसी की हमारे मुस्काने चढ़ती दिखायी पड़ती है

अगर चाहते हो भारतवर्ष का ताज कभी न बाटा जाएँ

तो त्वरित रूप से दहशतगर्दो का सर वही पर काटा जाएँ ll


दहशतगर्दी सेहचर यहाँ के, भिन्न करार चलाते है

अपना लोकतंत्र, अपनी सत्ता, अपनी सरकार चलाते हैं

घाटी का उत्थान तभी है, जब लोकतांत्रिक यहाँ का अगवा होगा


सारी विपदाए छूट जाएगी, जब कण - कण में सबके भगवा होगाll


स्वाधीन मुल्क में स्वाधीनता मांगते, हाय कैसी बेशर्मी हैं,

उन्नति करते सिर्फ़ वही जो लोग यहाँ अधर्मी है

'अज़ादी - अज़ादी' का नारा लगाते इन पुतलो पर, अब अपना वक़्त न बरबाद करो,

अरे चौराहे पर खड़ा करके, गोली माँरो अज़ाद करो!!


क्योंकि,....

आवरण ओढ़े चाहे कितने प्राणी आखिर जात दिखाता हैं,

और भौके चाहे कितने सुर में कुत्ता,कुत्ता कहलता हैं

इसलिए न बात चीत से होता हैं न हसी ठिठोली से होता है,

चली हुई गोली का जवाब केवल गोली होता हैं ll


नगपति के इस विराट वक्ष पे, कुछ तुहिन पिघलानी होगी,

सुर्ख से अंकित धवल चादर पर, समर भूमि बनानी होगी,

शरद से पस्त इस रेगिस्तान में, फिर से आग लगानी होगी,

और रक्त शोणित बीज बोकर, यह ज्वाला भड़कानी होगी ll


हर वक्ष में फूला हैं पवन, रूद्र में उबाल हैं,

ये देख घाटी का इतिहास लिखने समुख काल का कपाल हैं,

हें लेखनी विनती हैं, इतनी शूरता प्रदान कर

श्वेत पन्नो पर असित स्याही में समस्या का निदान कर ll


घाटी का स्वरूप सुशोभित, मनोहर कहलायेगा,

जब चाँद सितारे केवल आकाश में हो और भूमि पर तिरंगा फहरायेगाl

जब आतंकी, आतंकी होगे न कोई भगवान बनायेगा

एकता जब जन - जन में होगी, तब ये ताज सुहाएगा ll


तब ये युद्धस्थल पावन होगा, देवभूमि निर्मल होगी

तब उरी, गुलमर्ग युद्ध नहीं, पर्यटन का स्थल होगी

तब करगिल के शिखर पर तिरंगा लहरायेगा,

तब भारत माँ का नाम कण - कण में बस जायेगा ll


कालगति की प्रखर युग ऋचा, पाञ्जन्य का नवीन नाद होगा

मानस उत्साह से ओत- प्रोत, धरा में नवीन उन्माद होगा

अनल समीक्षण जो पूर्ण करे, अखंड सत्य प्रखर वही हैं

इस धरती पर स्वर्ग कही है, तो यही है! यही है! यही है!!

मयंक

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