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Writer's picturePranjal Mishra

अब घर याद आता है

Updated: Nov 21, 2023

एक साल ऐसा आया,

कुछ कर दिखाने का जुनून चढ़ा।

इसी बात के जोश-जोश में,

घर से दूर निकल पड़ा।


हठ थी या जुनून था,

घर से दूर जाने का।

हज़ार कदम आगे बढ़कर,

कुछ बड़ा कर दिखाने का।


ज़रूरतें बटोरीं और निकल पड़े,

मंजिल की तलाश में।

माँ की दुआएँ ले लीं,

पिता के पैसे रखकर पास में ||


पहली बार जब निकला था,

तो मानों बहार आई है।

लेकिन अब लगता है कि घर जाने में ,

एक बड़ी अड़चन आई है।


कभी-कभी नए आशियाने में,

थोड़ा-सा भी मन नहीं लगता,

जोर-जोर से हंस कर भी,

काम नहीं चला करता,

चाहे कितना ही सबसे मिल जुल लो,

ये मन प्रफुल्लित नहीं हो पाता है,

लगता है की बड़े दिनों बाद,

अब घर याद आता है।


जब हॉस्टल का बिस्तर,

नर्म नहीं लगता,

जब मेस की चाय का प्याला,

गर्म नहीं लगता ,

जब किसी भी कमरें में कोई,

अपना नहीं मिलता ,

जब रात में देखने को,

कोई सपना नहीं मिलता,

जब नाराज़ होने पर,

कोई मनाता नहीं ,

जब छोटी-छोटी बात ,

कोई सिखाता नहीं,

जब लगता है अब तो मुझे,

कुछ भी आता नहीं,

जब शाम ढलने पर ,

चार दीवारों के सन्नाटे में ,

भविष्य धुंधला नज़र आता है,

तब घर याद आता है।

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