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Writer's pictureMrityunjay Kashyap

अश'आर जारी है

मेरा ग़म-नाक वक़्त-ए-इम्तिहाँ-ए-अस्ल जारी है,

मना तू कामयाबी, आबरू जो तेरी प्यारी है।


मुरीद-ए-हुक्म था मैं दूद आतिश का उठा जो हो,

बुझी तज़्लील आब-ए-चश्म से हर एक चिँगारी है।


फ़िदा को आरज़ू-ओ-तिश्नगी-ए-फ़ज़्ल जिससे थी,

रजा-ए-रह्म उस क़स्साब से बद होशियारी है।


किया मंजूर बे-मन ही सही अपना नहीं कोई,

ज़माना काग़ज़ी कश्ती चढ़ी डूबी सवारी है।


मुझे क्या ग़म कि ना वज़्न-ओ-लिहाज़-ए-लफ़्ज़ मेरा है,

हुआ मैं कौन, पर रख याद कल को तेरी बारी है।


ज़हालत कम मेरी भी तो नहीं, बावर ज़बां पर जो,

नवा से सीरत-ए-चालाक कोयल भी बिचारी है।


ख़ुशी-ओ-ग़म कली एक ही गुलिस्ताँ में खिले बाहम,

भँवर ‘मुतरिब’ इधर हो या उधर अश'आर जारी है।


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