अश'आर जारी है
मेरा ग़म-नाक वक़्त-ए-इम्तिहाँ-ए-अस्ल जारी है,
मना तू कामयाबी, आबरू जो तेरी प्यारी है।
मुरीद-ए-हुक्म था मैं दूद आतिश का उठा जो हो,
बुझी तज़्लील आब-ए-चश्म से हर एक चिँगारी है।
फ़िदा को आरज़ू-ओ-तिश्नगी-ए-फ़ज़्ल जिससे थी,
रजा-ए-रह्म उस क़स्साब से बद होशियारी है।
किया मंजूर बे-मन ही सही अपना नहीं कोई,
ज़माना काग़ज़ी कश्ती चढ़ी डूबी सवारी है।
मुझे क्या ग़म कि ना वज़्न-ओ-लिहाज़-ए-लफ़्ज़ मेरा है,
हुआ मैं कौन, पर रख याद कल को तेरी बारी है।
ज़हालत कम मेरी भी तो नहीं, बावर ज़बां पर जो,
नवा से सीरत-ए-चालाक कोयल भी बिचारी है।
ख़ुशी-ओ-ग़म कली एक ही गुलिस्ताँ में खिले बाहम,
भँवर ‘मुतरिब’ इधर हो या उधर अश'आर जारी है।
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