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एक कहानी होली वाली

बात ऐसी नहीं थी कि मुझे होली के इस त्योहार से कोई चिढ़ है, अच्छा लगता है। बेरंग पड़ी इस दुनिया को कम से कम रंगों की मौजूदगी का एहसास होता है दिखावे के लिए ही सही लोग गले तो मिलते है। मुझे याद है कैसे रोहित के फाइनल एग्जाम होते

हुए भी वो पिचकारी की जिद करता था, फिर भींग के आता और माँ के बनाए हुए मालपुए लेकर सारे बच्चों में बाट देता। मेरे

कंधे पर लटक के मुझे रंग लगाता, हैप्पी होली पापा चिल्लाता और आज... आज पूरा एक साल हो गया उससे बात नहीं हुई उससे कल शाम जब मोबाइल खोल के बैठा हुआ था तो सुशीला बोल पड़ी, 'तुम अपने दुख की वजह खुद हो, कोई और नहीं है। हक्क है लल्ला का नाराज़ होना जैसे तुम्हारा था उसे घर से निकालना। फिर वो रोने लगी। चुभा था ये शब्द निकाला नहीं या मैंने उसे बस नौकरी करने के लिए दिल्ली भेजा था अपने भाई से पैरवी लगवा के दिल्ली में नौकरी दिलाई थी, पोस्ट ग्रेजुएट होने के बावजूद उसे फ़िक नहीं थी कि नौकरी करे, सेटल हो! बस दिन भर दोस्तों के साथ सड़कों की खाक छानता, माँ से पैसे लेकर उड़ाता और फिर देर शाम आता मुझसे ये सब देखा नहीं गया। वो होली का दिन था, एक शाम पहले से ही वो गायब था सुशीला ने दहन के पकौड़े बनाए थे पर वो आया ही नहीं, अगले दिन


दुल्हेंडी पार होने पर चहरा दिखाया में आते ही उसपे बरस पड़ा, 'यहाँ कमा कमा के मेरी हड्डीयाँ घिस गई, खून सूख गया और


ये नालायक, बेरत आदमी बस आवारागर्दी में लगा हुआ है। क्या लॉर्ड साहेब बाप का पैसा पचाने में कैसा लगता है, बताईये!


मैं तो उस दिन को कोसता हूँ जिस दिन तू पैदा हुआ। अगले दिन ट्रेन की टिकट उसे पकड़ाई और बोला, "चाचा ने बात कर ली


है जाओ अपना कमाओ और उड़ाओ खबरदार जो नौकरी छोड़ के भागा है।"


मेरी पत्नी मुझे पत्थर दिल कहती हैं, वो रोती रही पर मैं पिघला नहीं हम पिता लोगों को कभी कभी होना पड़ता है सख्त, बनना पड़ता है कठोर वरना ये दुनिया खा जाएगी उस दिन से उसके और मेरे रिश्ते में दरार आ गई वो रोज़ फौन करता पर सिर्फ माँ से बात करने के लिए मैं फोन उठाता भी तो काट देता। इसलिए मैंने फोन उठाना ही छोड़ दिया। सिर्फ उसकी माँ से उसका हाल चाल ले लेता, वो मुझे परेशान देख के कभी कभी बोलती, "तुम गलत नहीं थे, बस तुम्हारा तरीका गलत पा" अरे पर नियत तो सही थी ना इतना कहता तो वो मुह फेर कर आँसू बहाने लगती। मैं और दुखी हो जाता।


आज फिर होती है पूरा साल बीत गया उससे बात नहीं हुई। मैं पार्क में बैठा छोटे बच्चों का शोर सुन रहा हु. बार बार छोटे रोहित की आवाज़ आती है "हैप्पी होली पापा!!" पर वो आस पास नहीं है, बहुत दूर है हम दोनों बहुत दूर हो गए है। सुबह एक बार कॉल लगायी थी. एक मैसेज भी डाला था। उसने मैसेज देखा है नीली टिक आ गयी है पर कोई जवाब नहीं आया। तभी फोन की घंटी बजी, नंबर जाने किसका था मैने फोन उठाया, सामने से कोई आवाज नहीं आयी, मैं ये चुप्पी पहचान गया। मन में गुबार ना अटकने लगा मैं बड़ी मुश्किल से बोल पाया।


'रोहिता बेटा रोहित


"हाँ मैं नया नंबर है सेव कर लीजिए।"


"हाँ हाँ......वो.. बेटा..."


"पापा जो कुछ मेसेज पे लिखा एक बार अपने से बोल दीजिए न उसने रोते हुए कहाँ.... हाथ सीने पर घर के मैने कहाँ


"होली मुबारक हो मेरी लायक औलाद, तेरे बिना बड़ी बेरंग है ये जिंदगी जा जा अब बहुत याद आती है तेरी'


'मैं आ रहा हू पापा जल्द आ रहा है, हैप्पी होली पापा


इस बार ये आवाज़ बहन नहीं थी सही में रोहित की थी, मेरी आँखे भर आयी रंग वापस प्रत्यक्ष हो गए। जीवन में नयी उमंग की बरसात हो गई। उसके बाद मैंने सभी बच्चों में मालपुए बांटे और कहाँ, हैप्पी होली बच्चों हैप्पी होली


जीवन में हमेशा रंग खुशी का हो, बातावरण मधुमय हो ये आवश्यक नहीं दुख भी उसी जीवन का हिस्सा है, बराबर का हकदार अगर दुख नहीं होगा तो सुख के होने का कोई मतलब नहीं। जीवन भी होली के इन रंगों सा है कभी लाल, कभी नीला तो कभी पानी सा बेरंग इसी में जीना जरूरी है।


यह मिट्टी की चतुराई है,


रूप अलग औ रंग अलग,


भाव, विचार, तरंग अलग है.


डाल अलग है ढंग अलग


आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो


होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर को

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