एक छोटी कहानी
Updated: Dec 17, 2023
एक पुरातन सुंदर उद्यान था (अथवा है?) यह पुरातन अवश्य था, परंतु नवीनता का उत्कृष्ट दर्पण भी। श्रेष्ठतम रमणीयता इसके विशेषण है। कोई भी वस्तु- चर या अचर तभी कालजयी हो सकती है जब वह ऐसे हाथों में हों जो ना केवल उसका प्रणेता-नेता हो अथवा संरक्षणक भी हो। उल्लेखनीय है कि उद्यान सजीव है, चर है, निरंतर है। यह निरंतर इसीलिए बना रहा है क्योंकि इस उद्यान के प्रत्येक माली ने उसका संरक्षण अपनी पुरी नैतिकता और न्यायप्रियता के साथ किया है। यह उद्यान अवश्य ही कबका नष्ट हो गया होता यदि प्रत्येक वर्ष माली इसमें वृक्ष की नवीन बीज ना रोपता। वह पहले तो बीज का चयन बड़ी ही बारीकी से- जटिलताओं से करता। आत्मस्वाभिमान और आत्मसम्मान रूपी मेड़ का निर्माण करता और उसके भीतर बीज रोपता। स्नेह-आत्मीयता रूपी जल से सींचता। विश्वास की खाद डालता। इसी प्रकार वह समयांतर में बीज को वृक्ष बनते देखता। यें वृक्ष सदैव फलदार होते। मजबूत तने वाले इस वृक्ष की अनेक डालियाँ होती। कुछ तने इतने फलदार होते कि मानों झुक कर सबका अभिवादन करते हों। वस्तुत: यह नम्रता का फल होता था। जो तना जितना फलदार था उतना ही नम्र। ऐसा नहीं है कि इस नम्रता को दोहन नहीं हुआ। स्वाभाविक ही है, झुके तने से ही फल तोड़े जातें हैं। तने को नम्रता के फल देने और अपना फायदा उताने में कभी शिकायत नहीं हुई। परंतु जब समय आगे बढ़ा और माली का किरदार बदला, तो धीरे-धीरे पहले तो आत्मस्वाभिमान और आत्मसम्मान की मेड़ का रक्षा कवच समाप्त किया गया, फिर स्नेह और आत्मीयता का जल सींचना बंद हो गया। विश्वास की खाद तो कभी पड़ी ही नहीं! तना सूखता गया। उससे अब फल की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। पहले फल बंद हुए, फिर पत्ते भी गिर गए। अब उद्यान में एक सुखी लकड़ी दर्प के साथ खड़ी है। जो भाव उस पुराने वृद्ध माली के मन में चाहरदीवारी के बाहर से गुजरने के समय आते हैं, वह जान मैं कुण्ठित होकर यह लिख रहा हूँ....!
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