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Writer's pictureMrityunjay Kashyap

और बाक़ी है

ग़म की बरसात और बाक़ी है,

इक मुलाक़ात और बाक़ी है।


बन चुकी दास्ताँ-ए-दिल पत्थर,

फ़िर भी जज़्बात और बाक़ी है।


कुछ सुना तुम करो सुनूँ मैं कुछ,

करने को बात और बाक़ी है।


दिन जुदा हो कटे नहीं तुमसे,

अब विरह रात और बाक़ी है।


बाग़ सूखे ख़िज़ाँ में जब सारे,

उस तरफ़ पात और बाक़ी है।


नींद अब उड़ चुकी ना ही सपने,

ना ख़यालात और बाक़ी है।


दर्द बीता अभी तो इक 'मुतरिब'

हाय आफ़ात और बाक़ी है।

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