कालजयी
धर्म युद्ध में – धर्म यज्ञ में,
हर अध्याय में जिसकी आहुति पड़ी,
औचित्य सिद्ध कोई कर पाया क्या?
क्यों दानवीर कर्ण की बलि चढ़ी।
बाहु का सामर्थ्य
पर भाग्य की दुर्बलता,
जननी ने न स्वीकारा
हाय! कैसी निर्ममता!
शौर्य गाथा न बना पाई
सूर्य पुत्र की शक्ति अथाह,
विधि के खेल ने रची
कर्ण की करुण कथा।
परशुराम के श्राप की,
स्वंयर के अपमान की,
सूत होने का दंड अथाह
राधेय कर्ण की यही कथा।
साधारण न कवच-कुण्डल
जिनका मिला इंद्र को दान,
थे वे दिव्य, अंग समान।
दान से परम कोई धर्म हैं क्या?
तो क्यों न हो कर्ण महान।
विद्या या शौर्य न बनायें अजेय,
विधि पे किसने पाया विजय?
निष्ठुर विधि का खेल अधम,
ब्रह्मास्त्र धारी
मरा कीचड़ में पशु सम।
धर्म उसे क्या न्याय करेगा
जिसे मिला नारायण छल।
कवि की कलम
साहित्य का दर्पण
राधेय कर्ण तुझको अर्पण।
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