top of page

दिल बेज़ार होगा

Updated: Mar 23

किस भरम में ख़ुश हुए थे हुस्न का दीदार होगा,

ख़्वाब जिसका राज़, अनक़ा का कहीं इज़हार होगा!


भूल कर भी चैन ना हो वो ख़याल-ए-दिल तेरा है,

बिन इलाज-ए-नफ़्स दर्द-ए-इश्क़ दिल बीमार होगा।


कोशिशें कम ना रही होंगी, मुक़द्दर बेवफ़ा था,

हो खुदा ही जो रक़ीब-ए-इश्क क्या इकरार होगा?


पैरहन हो तू मेरे जिस्म-ए-बरहना-ओ-जवाँ का,

बिन तपिश कमबख़्त रात-ए-सर्द में लाचार होगा।


जो गुल-ए-बाग़-ए-बहार-ओ-मुश्क-बू जैसे खिले तू,

मजलिस-ए-शब में महक का काम फिर बेकार होगा।


है नहीं शर्म-ओ-हया बाज़ार में उल्फ़त करूं मैं,

बंद कमरे में तुझे क्या इश्क़ का पिंदार होगा?


चाहकर भी क्यों नहीं लफ़्ज़-ओ-अमल करते इहानत,

क़ाबिल-ए-दर्द-ओ-सज़ा दिल ही मेरा गद्दार होगा।


बन मुलाक़ात-ए-सनम का मुंतज़िर मैं राह देखूं

आश्नाई में तेरी रोज-ए-क़यामत पार होगा।


थक गया है राब्ता-ए-इश्क़ इक-तरफ़ा से ‘मुतरिब’,

फ़िक्र उनको है नहीं, इस फ़िक्र दिल बेज़ार होगा।

27 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page