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दो बंकिम नयन तिहारे


फूट भाल से किसी नग के 

सरल, विरल, तरल सी धार 

धर धरा पर रूप नदी का 

ग्राम, घाट, पुर करती पार 

बहते जल को बाँधे जैसे 

नदिया के दो किनारे 

वैसे समेट बंधन सारे 

दो बंकिम नयन तिहारे


सीप में छिपे दो मोती से, 

दो बंकिम नयन तिहारे

जलते दीपक की ज्योति से, 

दो बंकिम नयन तिहारे

रात चाँद की सूरत से,

दो बंकिम नयन तिहारे

सियाराम की मूर्त से,

दो बंकिम नयन तिहारे


गुलशन की दो कलियों से,

दो बंकिम नयन तिहारे

खेत में नाचती फलियों से,

दो बंकिम नयन तिहारे

भोर की पहली दो किरणें,

दो बंकिम नयन तिहारे

रात की अंतिम दो पहरे,

दो बंकिम नयन तिहारे


मौसमों में आती बहार सी,

दो बंकिम नयन तिहारे

सावन की पहली फुहार सी,

दो बंकिम नयन तिहारे

बसंत के झकोर से,

दो बंकिम नयन तिहारे

चाँद और चकोर से,

दो बंकिम नयन तिहारे


बुलबुल के गुंजन से,

दो बंकिम नयन तिहारे

आँखों के अंजन से,

दो बंकिम नयन तिहारे

मन में उठती मीमांसा सी,

दो बंकिम नयन तिहारे

अंजुरी में कैद आकांक्षा सी,

दो बंकिम नयन तिहारे


तेरी खिड़की मंदिर है,

द्वार है चौक चौबारे 

सबसे प्यारे, जग से न्यारे

दो बंकिम नयन तिहारे.... 


- मयंक 


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