पौरुष
- Mrityunjay Kashyap
- Feb 2, 2024
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Updated: Feb 3, 2024
पौरुष का प्रबल प्रदर्शन होनहार है,
जब काल का पांचजन्य करेगा नाद,
जो सृजन माया का अधिकार नहीं,
उससे क्यों किया आमंत्रित विवाद।
जिसके अधीन मौर का कर उत्सर्ग,
क्षीरोदधि अवलम्ब पद अंबुज विश्राम,
विधि कमंडल संचिता, वेग ध्वंसकारी,
अवतरित भागीरथी वरण कर नाम।
है जिसका अंक ही अनंत आकाश,
पौरुष तपबल समक्ष वह भी हारा,
जनक अंक अधिकार जिसे प्राप्त नहीं,
वही उद्यमी बालक विख्यात ध्रुव तारा।
विभूति, विभीति, वीभत क्या होगा?
कदापि नहीं है इन करतल अंकित,
क्षण वक्षण विचक्षण वीक्षण है संभव?
यदि धमनी में उद्यम मद्य शोणित।
मानस की आभा, बनी स्व कलंकिनी,
असित चिन्ह मलीन मानों मयंक,
क्रियान्वयन हेतु सहित जो परिश्रम,
दक्ष अक्ष समक्ष भक्ष पुण्य अंक।
सकल सहज सरल सजग सजन,
जिनका उद्योग प्रपंच आदित्य समान,
क्या मिथ्या श्री तम बनेगा प्रतिद्वंद्वी?
प्रज्ञा बोध क्या यह नहीं आसान?
पद नहीं नीर्णीत करता श्रम मूल्य-
क्या बना राम का परिचय युवराज?
पृच्छा इच्छा अच्छा को दे चुनौती,
व्याज लाज, साज समाज काज।
होंगे अवश्य परिश्रम समानार्थी अनेक,
परंतु ना मिले कल्प अल्प विकल्प,
कुमति प्रेरित कुटिल मार्ग मृगतृष्णा सी,
लघु, शीघ्र तथा सुगम- मात्र जल्प।
दर्पण प्रतिछाया का क्या अस्तित्व,
प्रत्यक्ष प्रस्तुत नहीं अभिनव स्वरूप,
त्यों ही मन मुकुर कहलाता है,
उल्ट अहंकार की दरार करे विद्रूप।
सागर तरंग जैसे पसारती आंचल,
पूर्णिमा पर उदय निखिल चंद्रमा पेखे,
पौरुष बल का यही उत्कृष्ट मापदण्ड,
श्रुति-शास्त्र सम्मत ऋषि-मुनि लेखे।
पार्थ! पार्थिव पथ पथिक पथ्य प्रार्थी,
बिन परिणाम परिमाण प्रमाण कर्मी,
काम और क्रोध ग्रसित लोभ अपकारी-
विशाल ज्ञान आगर कहे उपदेश मर्मी।
पौरुष पुरुषार्थ प्रयोजन का पराक्रम,
विकसे धर्म पुष्कर देख शौर्य पतंग,
अर्थ अलि अली, सुवास अभिलाष,
मोक्ष मधु मकरंद, मर्त्य शोक भंग!

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