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पलायन

कुल डेढ़ साल पहले एक नुक्कड़ लिखा था, उसमे यह कविता लिखी थी l पलायन और उससे उठती विडंबना दोनों को इसमे दर्शाने का प्रयास है, उम्मीद है आप इसके मर्म तक पहुच पायेगे - 


यहाँ तर्क पड़ा सड़कों पर 

सत्ता की बजती तूती है 

स्वप्न, प्रतिभा, विद्या, ज्ञान 

प्रशासन के पैर की जूती है 


कालखंड की अदालत में 

सब मुक़दमे खोटे है 

भेड़ चाल से अलग चले जो 

वो लोग यहाँ पर छोटे है 




सब विकास छुप गया है 

पलायन की परछाई में 

प्रतिभाओं की घाटी रोती है

मरघट सी तन्हाई में 



मस्तिष्क के इस भूचाल को 

रुद्र के इस उबाल को 

कैसे काबू कर सह पाते 

फिर क्यों हम वतन छोड़ न जाते

फिर क्यों हम वतन छोड़ न जाते...... 


- मयंक


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