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बासी रोटी


तो कहानी शुरू होती है उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से जिसका नाम है मैनपुरी।

दिन गुरुवार, तारीख 25 जनवरी 2001 को उसी जिला के रहने वाले प्रमोद सिंह का विवाह संपन्न हुआ था। उसकी बीवी, जिसका नाम शालिनी था, वो बड़े शहर से थी। रांची की रहने वाली थी वो। पढ़ी लिखी एवम सर्व गुण संपन्न।

अब आप सोच रहे होंगे कि कहा मैनपुरी और कहा रांची, इतनी दूर कोई ब्याह देता है क्या?



पर क्या करें, जब तीन बार बैंक के लिखित परीक्षा को पास करने के बाद और तीसरी बार इंटरव्यू भी अच्छा होने के बाद जब रिजल्ट के लिस्ट में अपना नाम नही मिलता तो इंसान कही भी शादी के लिए मंजूरी दे ही देता है।

तीसरी बार में सिलेक्शन हो ही जाता अगर इशारे समझने में देर न होती।


शालिनी के पिताजी खुद बैंक में ऑफिसर थे, पर वे यह नहीं समझ पाए की रिजल्ट निकलने के पहले उन्हें मिठाई का डिब्बा ऑफिस लाने के लिए क्यों बोला जा रहा है!

वो तो रिजल्ट निकलने के बाद के दावत के बारे में सोच कर पहले मिठाई का डिब्बा लेकर गए ही नही और इसी वजह से डोली आ पहुंची मैनपुरी जिले में।


प्रमोद और शालिनी की शादी को अब 2 महीने से अधिक का समय हो गया था।परंतु लोगो का तांता अभी भी लगा ही हुआ था। सुबह का सारा समय जाता था घर का काम काज करने में और शाम को प्रतिदिन कोई न कोई आ ही जाता था नई दुल्हन से मिलने के लिए...

प्रमोद के घर में तीन लोग रहते थे, प्रमोद, उसकी मां और शालिनी।



शालिनी अक्सर जब रात को सबके लिए खाना बनाने जाती थी तो उसे रोटी के बक्से में हमेशा एक बासी रोटी मिलती थी। वो बासी रोटी कई दिनों तक ऐसे ही रसोईघर के ताक पर रह जाती थी। कभी कभी तो उस पर फफूंदी भी लग जाती थी उसके बाद उसकी सास उसे एक गाय को खिलाती थी। ऐसा काफी दिनों तक होता रहा।


तो एक दिन वो सोची की गाय को जब रोटी खिला ही रहे है तो उसे ऐसी सूखी रोटी खिलाने से बेहतर है की उसे ताजा रोटी खिलाएं।

तबसे जब भी वो रोटी बनाती थी तो हमेशा एक रोटी ज्यादा बनाके उसे उसी दिन गाय को खिला दिया करती थी।

ऐसा ही 3-4 दिन तक हुआ।



फिर एक दिन उसकी सास ने उससे पूछा की रोटियां क्यों नही बचती आजकल?

तो उसने बताया कि वो उस दिन की रोटी उसी दिन गाय को खिला देती है... इस पर उसकी सास ने अपना माथा पीट लिया और जोर जोर से चिल्लाने लगी की, "हाय भगवान! तुमने दो दिन इस घर में आके गाय को रोटी खिला दी! अब तो सारा पुण्य तुम्हे लग जायेगा! हमारे घर के बाबाजी ने बताया था कि यदि गाय को बासी रोटी मैं खिलाऊंगी तो मुझे पुण्य प्राप्त होगा..मेरी पुण्य की कमाई खाना चाहती हो?"


इन वाक्यों को सुनकर पहले तो वो समझ ही नही पा रही थी की क्या बोले... फिर उसने बिना कुछ कहे ही माफी मांग कर अगले दिन के लिए एक रोटी बनाकर रख दी।


उसकी सास ने अब सोच ही लिया था की जो भी 2-4 दिन का नुकसान हुआ है उसे वह अगले 1 महीने तक गाय को रोटी खिलाके पूरा करेगी। इसी दृढ़ विश्वास के साथ वह रात को सोने गई और उधर शालिनी के लिए यह एक बड़े ही आश्चर्य की बात थी। बचपन से सीधे साधे और खुले विचारों के साथ रहने वाली शालिनी के लिए यह अजीब बात थी की कोई कैसे सिर्फ पुण्य का सोच के दूसरो का भला कर सकता है... इस बात से उसे काफी ठेस भी पहुंची थी कि वो तो केवल अच्छे के बारे में सोच कर ही गाय को रोटी खिलाने गई थी....


फिर न जाने क्यों वह गाय फिर कभी दिखी ही नही और उधर प्रमोद की मां हर रोज रोटी बनाकर बैठी रहती थी पर गाय अब घर के बाहर कभी नही आई...



 
 
 

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