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मिथ्या


फैली इक खबर

इससे डोला है सबर

है झूठ की वारि में डूबा ये शहर l


डाल हो या पात हो

अब दिन हो या रात हो

असत्य की चपेट में है हर डगर l


जान का न मान है

असत्य को गुमान है

इंसानियत चौराहे पे यू मर गयी।


पंछियों के पर नहीं

कानून का भी डर नहीं

पाप की सुराहिया भी भर गयी l


काल में उबाल है

इंसानियत बेहाल है

सड़क पे ही हो रहा अब न्याय है l


मिथ्या आज प्रखंड है

पाषाण युक्त दंड है

असत्य के परमाणु का निकाय है l

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