मुझे ग़म नहीं
क़ाबिल-ए-ख़्वाहिश-ओ-आरज़ू हम नहीं,
यह चकोर-ओ-मह-ए-नौ सा आलम नहीं।
मुझ पे एहसान बाक़ी रहेगा तेरा,
वक़्त ज़ख़्म-ए-जुबाँ का है मरहम नहीं।
भूल जौर-ओ-जफ़ा की हदें ज़ुल्म कर,
हूँ ज़बां का सताया मुझे ग़म नहीं।
नूर शम्स-ओ-क़मर सा रुख़-ए-ज़र्द पर,
बिन फ़रेब-ए-निगाँ के है क़ायम नहीं।
बन्दगी से भी पिगला नहीं तू ख़ुदा,
क़ल्ब तेरा हजर सा मुलायम नहीं।
ज़ीस्त-ए-मुख़्तसर पर ग़ुरूर-ओ-गुमाँ,
है गिल-ओ-आब का बूद हरदम नहीं।
आज़माँ लो मेरी आज मेहर-ओ-वफ़ा,
दास्ताँ-ए-उमर इम्तिहाँ कम नहीं।
मान लूँ दिल तेरा ख़ालिस-ओ-पाक है,
शक्ल-ओ-सूरत पे तौबा या मातम नहीं।
इल्तिमास-ए-दु'आ हर दफ़ा की यही,
इन को 'मुतरिब' के जैसा मिले ग़म नहीं।
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