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Writer's pictureMayank Kumar

मुहाजिरनामा


मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं,तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं ।

कहानी का ये हिस्सा आज तक सब से छुपाया है,कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं ।

- मुनव्वर राना  

सन् 1947, धरती की छाती पर एक लकीर खीच दी गई l एक वतन के दो टुकड़े हो गए थे l किनारे के कुनबे अपना पता भूल गए, कौन इधर कौन उधर कोई नहीं समझ पाया l रातों रात लाखों लोग दरबदर हो गए l सीमाओं को चीरती रेलगाड़ियों में जो लोग चढ़ते वो उतरते उतरते सुर्ख़ बुत बन जाते l सिंधु के पानी का रंग अब लाल पड़ गया था l कोई लखनऊ में पुरखों की हवेली को छोड़ लाहौर की तरफ़ निकल पड़ा तो किसी ने इस्लामाबाद की गलियों को अलविदा बोल इलाहाबाद का रास्ता पकड़ लिया l

ये एक वतन से दूसरे की ओर पलायन करना इसको हिजरत कहते है और जो लोग हिजरत करते है उनको मुहाजिर कहाँ गया l सन 1947 के पलायन और कत्लेआम पर बहुत लिखा पढ़ा गया है l प्रेम कहानियो से लेकर दैनिकी के रूप में लेख सब लिखे गए l इसी क्रम में आयी मुनव्वर राना की किताब मुहाजिरनामा l कुछ तो ऐसा है इस किताब में जो आपको न चाहते हुए भी रोने पर मजबूर कर देगा l आज का यह लेख मुहाजिरनामा के नाम l 

मुहाजिरनामा दरअसल उर्दू शायरी की सबसे लंबी नज़्म है l आम तौर पर ऐसी किताबों में ग़ज़ल और नज़्म का एक अनोखा संगम होती है परंतु ये सिर्फ एक नज़्म है l एक ख़्वाब के इर्द-गिर्द बुनी गया साहित्य, हालाकि नज़्म पूरी की पूरी मीटर में लिखी गई है, और ग़ज़ल के प्रारूप को इसमे पूरी तरह जीवित रखा गया है l करीब 500 शेरों का संग्रह है मुहाजिरनामा, एक बहुत बड़ी नज़्म जिसे शेर के मीटर में लिखा गया l 


मुहाजिरनामा के पीछे का किस्सा बहुत अनोखा है l एक बार मुनव्वर सहाब पाकिस्तान गए l वहाँ एक मुशायरे के दौरान बाहर सिगरेट पीने निकले तो एक शख़्स ने उन्हें देखा और बोला, " राना सहाब आपको इसके बाद हैदराबाद चलना है l एक मुशायरा है कल और वहाँ आपकी मौजूदगी बेहद ज़रूरी है l" मुनव्वर सहाब ने कहाँ, " मिया घुटने अब ऐसे सफर की इजाज़त नहीं देते इस मुशायरे के बाद मैं वतन की ओर रवाना हो जाऊँगा l" उस आदमी ने जिद्द की पर जब मुनव्वर सहाब नहीं माने तो वो बोला, " जितना आपको यहां मिल रहा है उसका चौगुना कर दीजिए और इस मुशायरे के बाद गाड़ी में बैठ जाइए l" मुनव्वर सहाब की आँखे चढ़ गई, जिद्द तक तो ठीक था पर यहां तो एक शायर के ईमान को सरेआम नीलाम करना, ये तो गवारा नहीं l 

उन्होंने कहाँ, " मिया बड़ी छोटी बात कर दी l अब आपने जब कोई सीमा रखी ही नहीं तो मेरी इतनी सी बात मान ले और यहां से चुप चाप चले जाए l" फिर वो मंच पर चढ़े और कहां, " ये उनके लिए जिन्होंने अभी मेरी बोली लगायी l" इसी तरह गढ़ा गया मुहाजिरनामा का पहला शेर l 

मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं,तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं । 

मुनव्वर सहाब वापस आए तो उन्होंने इस कृति को जन्म दिया l 


खैर किताब पर वापस आते है l हम बात कर रहे थे हिजरत की l बटवारे ने कितने दिल तोड़े, कितनों को नेस्तनाबूद कर दिया, कितने जीवन बर्बाद कर दिए उसकी कई तस्वीरे मुहाजिरनामा में आपको देखने को मिलेगी l इस किताब के परिचय में लिखा गया है - 

" जिन पैरों के ज़ेवर बनने के लिए चाँदी की जूतियां बेताब रहती थी, रफ़्ता-रफ्ता वो ही खूबसूरत पाव केवल हवाई चप्पलों के इश्तेहार बनकर रह गए l जिन घरों में दूध के लिए कभी बर्तन कम पड़ते थे उन घरों में माँओ की छाती भी रेगिस्तान की तरह सूख गई l डोलियो और पालकीयो में सफर करने वाली ख़वातीन फटे पुराने बुर्को से अपनी आबरू छिपाने में नाकाम हो गई l वतन से मोहब्बत की इतनी बड़ी सज़ा शायद दुनिया की किसी बदनसीब कौम को नहीं मिली l सरहदें बटी, ज़मीने बटी तो ज़ुबाने भी बट गई l उर्दू के सर टोपी लगी और हिंदी के माथे पर तिलक l उर्दू का तो जन्म ही हिन्दुस्तान में हुआ है ये हमारे लिए परदेसी जुबाँ कब हो गई l उर्दू हिन्दुस्तानी नस्ल की वो लड़की है जो आज अपने सलोने हुस्न और मिठास भरे लहजे की बदौलत सारी दुनिया में मशहूर व मकबूल है l तक़रीबन चार सौ बरस पुरानी ये दोशिज़ा आज भी जब ग़ज़ल का लिबास ज़ेबतन कर लेती है तो दुनिया की बड़ी से बड़ी जुबां की दूधिया रंगत मैली हो जाती है l आज भी ये भिकारन चेहरे पर लाहौरी नमक, जिस्म पर हिन्दी शब्दावली का पैराहन, बंगला जुबां की बिंदी, पंजाबी जुबां का अल्हडपन, संस्कृत की संजीदगी, अवधि का शर्मिलापन, कश्मीर की ताज़गी, मैथिली की मासूमियत, गुजरात की सादामिजाज़ी, राजस्थान का बागपन, रोहिला की जवांमर्दी, बुंदेलो का वकार और मराठों की बहादुरी के साथ तेलुगु, कन्नड और तमिल का गजरा बांधे हुए कौमी अगज़ैती के रथ पर सवार होकर निकलती है तो हर साहिब - ए - नज़र तस्वीर बनकर रह जाता है l"

हज़ारों सरहदों की बेड़ियाँ लिपटी है पैरों से हमारे पाव को भी पर बना देता तो अच्छा था परिंदों ने कभी रस्ता नहीं रोका परिंदों का खुदा दुनिया को चिड़ियाघर बना देता तो अच्छा था

मुहाजिरनामा इसी ख्याल का इख्तियार लेती है, हर पन्ना हर शेर एक कहानी कहता है l क्या था, क्या हो सकता था और आज क्या है हर समय की धारा को चीरते हुए ये दीवान अपने आप में एक बहुत मुक्कमल दास्ताँ कहता है l जाते जाते इसी कृति के कुछ शेर छोड़ कर जा रहा हू, पहले इनको पढ़िए और फिर मुहाजिरनामा को l मुझे पता है आप शिकायत नहीं करेगे.... 


नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में,पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं ।

अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी,वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं ।

किसी की आरज़ू के पाँवों में ज़ंजीर डाली थी,किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं ।

पकाकर रोटियाँ रखती थी माँ जिसमें सलीक़े से,निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं ।

जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है,वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं ।

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