याद है
आजकल यूँ सामने नज़रें चुराना याद है,
क्या तुझे एहसान मेरा भूल जाना याद है।
दिल लगाने से नए नातों को अब तौबा किया,
बेवफ़ा होता हुआ रिश्ता पुराना याद है।
कामयाबी पर क़सीदे जो पढ़ें वो कौन था,
सिर्फ़ नाकामी का आईना दिखाना याद है,
है अधूरा मुझ पे मुखलिस के दग़ा का क़र्ज़ इक,
हर हिसाब-ए-दोस्ताँ तेरा चुकाना याद है।
अब ज़रूरत जो हुई होगी ख़बर ली तो तभी,
कब किसे बेकाम भी 'मुतरिब' दिवाना याद है।
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