शाश्वत गणतंत्र का वासी हूँ मै
बलिदान , वैराग्य,तपोभूमि का निवासी हू मै
समूचे जग का विष धरे वो कैलाशी हू मै
लटक कर जिसपे अमर हुए वीर वो फाँसी हू मै
हरिद्वार मथुरा वृंदावन काशी हू मै
समृधी का पर्याय ताशी हू मै
शरण में तेरी, अप्रवासी हू मै
स्वर्णिम अनागत काल का अभिलाशी हू मै
सकल शास्वत गणतंत्र का वासी हू मै
भूमि जहाँ सूर्य का रथ सदा ही ठहरा है
जहाँ पर विशाल हिमालय महासागर का पहरा है
गंगा यमुना का तारण जिसको शोभित करता है
नमोकार का उच्चारण जो सबको मोहित करता है
धरा जिसने विश्व को सभ्यता का ज्ञान दिया
वेद ऋचा का धन संपूर्ण संसार को दान किया
आर्यभट्ट का शून्य जिसने सकल गणित को परख लिया
आयुर्वेद की भूमि यह जिसने दुनिया को चरख दिया
तानाशाही राजतंत्र का जिसने बहिष्कार किया
समता और स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार दिया
जहाँ विभिन्न रंग रूप खान पान और वेश है
संविधान जहाँ का परामर्श और धर्म निरपेक्ष है
जनता यहा कि सत्ताधीश
जनतंत्र यहाँ का मंत्र है
संपूर्ण संसार को मार्ग दिखाए
ये भारत का लोकतंत्र है
मै भी पुत्र इस भूमि का
महाराणा का चेतक हू
सत्ता को जो लालकरे सदा
उस कलम का सेवक हू
मै हरकरा उस शब्दवंश का जिसके प्रेरक रणधीर हुए
जिसके शिष्य तुलसी, मीरा, दिनकर और कबीर हुए
खुदीराम की फाँसी, रानी लक्ष्मी की झाँसी हू मै
सकल शास्वत इस गणतंत्र का वासी हू मै ll
-मयंक
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