साहित्य और हम
- Mayank Kumar
- Jul 31, 2023
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कुछ लोगों की धारना है कि साहित्य केवल बैठे ठाले लोगों के लिए मनोरंजन की सामाग्री उपस्थित कराता है, इसके अतिरिक्त इसकी कोई भी उपयोगिता नहीं है l किन्तु यह धारना सर्वथा भ्रांतिपूर्ण है l साहित्य का लक्ष्य केवल मनोरंजन की सामग्री उपस्थित करना नहीं है, उससे लोगों का मनोरंजन भी हो जाता है यह दूसरी बात है l
तब प्रश्न यह है कि मानव समाज के लिए साहित्य की क्या उपयोगिता है? इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमे दूर जाने की आवश्यकता है l 'साहित्य' शब्द के अर्थ में ही उसका संपूर्ण लक्ष्य और उपयोगिता छिपी है l 'साहित्य' शब्द का अर्थ है हित के साथ, अर्थात जिसमें मानव मात्र के कल्याण की भावना निहित हो l राजशेखर ने कहाँ है -
प्रत्यक्षकविकाव्यं च रूपं च कुलयोषितः।
गृहवैद्यस्य विद्या च कस्यैचिद्यदि रोचते ॥
किसी किसी प्रत्यक्ष कवि का काव्य, कुलवती स्त्री का रूप और घर के वैद्य की विद्या ही अच्छी लगती है। उन्होंने लिखा है जिसमें शब्द और अर्थ का समान रूप से मह्त्व हो, उसे साहित्य विद्या कहते है l इस प्रकार साहित्य खुदको दो तीरो से जुड़ा पाता है - एक तो जनहित से संबंधित और दूसरा शब्दार्थ से l
तात्पर्य यह है कि साहित्य की रचना मानव कल्याण की भावना से प्रेरित होकर ही होती है l और यदि साहित्य का उदेश्य मानव कल्याण है, तो फिर साहित्य की उपयोगिता भी स्पष्ट है l
प्राचीन काल के विद्वानों ने साहित्य की उपयोगिता तथा उसके प्रयोजनों पर काफी गंभीरता से विचार किया है l साहित्य एवम् काव्य को लेकर आचार्य मम्मट ने भरत से लेकर कुन्तक तक सभी के विचारों को शामिल करते हुए ‘काव्यप्रकाश’ में कहा-
काव्यं यशसे अर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये।
सद्यः परनिर्वृतये कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे॥
मम्मट की इस सूचि में सबसे पहले आता है ‘यश’। उनका मानना था कि कविता का प्रयोजन कवि को यश की प्राप्ति कराना है l यश की कामना मानव मात्र करता है और साहित्य की रचना से मानव को यश मिलता है l
दूसरा प्रयोजन मम्मट ने ‘धन की प्राप्ति’ माना है।अर्थ के बिना हमारा कोई भी प्रयोजन सम्भव नहीं है l उस ज़माने के कवियों के आश्रयदाता, राजाओं के रूप में भी, हुआ करते थे। वे इनसे धन पाते थे। कई किस्से हमने सुन रखे है, अशर्फ़ी आदि देने-पाने के।
तीसरा प्रयोजन, मम्मट के अनुसार ‘व्यवहार ज्ञान’ है, काव्य के पाठक को व्यावहार में निपुणता प्राप्त होती है l सृजन हमें जीवन का व्यवहार ज्ञान देता है।दूसरी ओर यह भी सच्चाई है कि संसार ज्ञान के बिना और सांसारिक शिक्षा के बिना साहित्य रचना में भी दम नहीं आता है l अर्थात रचना को लोक निपुण होना चाहिए l
मम्मट ने चौथे प्रयोजन के रूप में “शिवेतरक्षतये” को माना है। अर्थात् अमंगल का नाश होना l उदहारण के लिए मयूर कवि कुष्ठ रोग से पीड़ित थे तो उन्होंने सूर्य स्त्रोत लिखकर इससे मुक्ति पायी थी l
पाचवां प्रयोजन मम्मट के अनुसार है, “सद्यः परनिर्वृतये”। अर्थात् दुख का नाश और आनंद की प्राप्ति। रस या आनंद प्राप्ति तो काव्य का काव्य का सर्वस्व काफ़ी बाद के दिनों तक माना जाता रहा। कवि या रचनाकार को कुछ मिले न मिले अपनी रचना को देखकर आनंद की प्राप्ति ज़रूर होती है l
और छठा उद्देश्य मम्मट के अनुसार “कान्तासम्मित उपदेश” है। अर्थात् कविता मीठा-मीठा बोलने वाली स्त्री की तरह लोकहितकारी उपदेश देने वाली होनी चाहिए। गोस्वामी तुलसी दास ने रावण की पत्नी मन्दोदरी का ज़िक्र करते हुए कई बार कान्ता शब्द का प्रयोग किया है। कान्ता वह स्त्री होती है जो पति का हित चाहने वाली होती है। मन्दोदरी रावण को बार-बार समझाती रही कि दूसरे की पत्नी और सम्पत्ति का हरण करने वाले का सर्वनाश हो जाता है, इसलिए सीता को लौटा दिया जाना चाहिए।
इस प्रकार साहित्य की उपयोगिता से कोई इन्कार नहीं कर सकता है l साहित्य हमारे पूर्वजो का संचित ज्ञानकोश है l उनके अनुभवों से हम अनायास लाभ उठा सकते हैं l और सभी बातों को ध्यानपूर्वक अध्ययन करने पर यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर किसी साहित्य या कला का जीवन में कोई उपयोग नहीं तो वो वस्तुतः साहित्य है ही नहीं l
साहित्य मानव जीवन को ऊपर उठाने वाला, उसकी वृत्तियों को संयमित करने के वाला होता है l अपनी बुरी प्रवृतियों को उद्धत बनाने की परम्परा हमे साहित्य से मिलती है l
Poetry is born of aesthetic mother and utilitarian father अर्थात कविता की उत्पत्ति सौंदर्यवादी माता और उपयोगितावादी पिता से होती है l अतः वह दोनों ही अधिकारी रहे है l सत्य साहित्य का साध्य है और सौंदर्य उसका साधन है l
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