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और मैं हूँ

मेरा भँवरा सा मन है और मैं हूँ,

तेरा गुल सा बदन है और मैं हूँ।


सितारों से भरा तेरा समाँ है,

क़मर सूना सजन है और मैं हूँ।


सुबह की शाम होगी राह तकते,

मेरे ठहरें नयन है और मैं हूँ।


अदा पर है फ़िदा ये जान मेरी,

मोहब्बत का क़फ़न है और मैं हूँ।


गिला मुझसे किया तूने कभी ना,

अजब सी इक घुटन है और मैं हूँ।


जुदाई दर्द देती है ये मुझको,

दवा तेरा मिलन है और मैं हूँ।


हुआ मदहोश आँगन में तेरे मैं,

खुला सिर पर गगन है और मैं हूँ।


कहोगे तुम अगर एहसास अपने,

कि पाने की जतन है और मैं हूँ।


तुम्हारी याद में दिन-रात बीते,

सज़ा में मन मगन है और मैं हूँ।


बनूँ मैं बागबाँ सुंदर कली तू,

तेरा दिल ही चमन है और मैं हूँ।


न दिल को चैन है ना जाँ सुकूँ से,

विरह की बस जलन है और मैं हूँ।


पुराने दाग़ दिल पर यूँ सजाऊं,

अनोखा यह चलन है और मैं हूँ।


बुरा मानों न मेरी बात का तुम,

ये प्यारी सी चुभन है और मैं हूँ।


यहाँ छाया भरम का ही अँधेरा,

वफ़ा रौशन किरन है और मैं हूँ।


भरे काग़ज़ किसे तू देख ‘मुतरिब’,

लिखे ग़म से सुख़न है और मैं हूँ।


Listen to the AI generated audio song of this Ghazal here-

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