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हमारा संविधान - कार्यपालिका

राज्य की क्या परिभाषा है? यह प्रश्न जितना सरल लगता है, काश उतना होता भी। माननीय उच्चतम न्यायालय के अनेक निर्णयों का मूल तत्व ही इसी परिभाषा पर निर्भर करता रहा है और आगे भी करता रहेगा। आंग्ल में जिसे 'state' कहा गया है, वहीं हिन्दुस्तानी में राज्य है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 12 राज्य की एक सशर्त सहायक परिभाषा देता है। उक्त अनुच्छेद के अधीन 'राज्य' के अंतर्गत भारत की सरकार और प्रत्येक राज्य की सरकार आती है। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि राज्य के तीन प्रमुख अंग है - कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका। आज संविधान दिवस का यह तथ्यात्मक लेख भारतीय संविधान द्वारा स्थापित भारतीय कार्यपालिका पर एक संक्षिप्त लेख है।

संविधान का भाग 5 कार्यपालिका का वर्णन करता है। भारतीय संघ का प्रमुख राष्ट्रपति है। अनुच्छेद 52 राष्ट्रपति का पद स्थापित करता है। जो कि एक निर्वाचित पद है। निर्वाचन प्रक्रिया का विस्तार 54-55 में है । राष्ट्रपति का चुनाव परोक्ष रूप से होता है। निर्वाचन की प्रणाली जिसमें संसद् और राज्यों की विधानसभा के सदस्य मतदान करते है, 'आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय प्रणाली' कहलाती है। राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का है तथा वह समय पूर्व अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को दे सकता है। (56(1))। राष्ट्रपति पर संविधान का अतिक्रमण करने पर महाभियोग चलाया जा सकता है (56 1ख) महाभियोग की प्रक्रिया अनुच्छेद 61 में उल्लेखित है।

इसी प्रकार अनुच्छेद 63 उपराष्ट्रपति पद स्थापित करता है जो राज्य सभा का पदेन सभापति होगा। उपराष्ट्रति का चुनाव संसद के उभय सदन के सदस्य करते है (66)। उपराष्ट्रपति का भी कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति की अनुपस्थिति अथवा आकस्मिक रिक्ति के दौरान, उसके कृत्यों का निर्वहन करेगा (65)।

यद्यपि राज्य का नामिक प्रमुख राष्ट्रपति होता है, तदापि वास्तविक अधिकार प्रधानमंत्री में निहित है। भारतीय राज्य का सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली पद प्रधानमंत्री का ही है। राष्ट्रपति मंत्री परिषद की सहायता और सलाह (aid and advice) के अनुसार कार्य करता है (अनुच्छेद 74)। मंत्री परिषद का प्रधान, प्रधान मंत्री होता है। प्रधान मंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति अपने विवेकानुसार करता है तथा इसके लिए संविधान अथवा कोई अन्य नियम नहीं है। राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की नियुक्ति सम्पूर्ण रूप से उसके विवेक का विषय है। सामान्यतः राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत दल या गठबंधन के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है। अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर करता है। (अनुच्छेद 75)। यह एक गलत अवधारणा है कि प्रधानमंत्री का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। इसका कोई तथ्यात्मक प्रमाण नहीं है और यह केवल जनमानस में व्याप्त एक अवधारणा है। भारतीय इतिहास में किसी प्रधानमंत्री का कार्यकाल कभी भी 5 वर्ष का नहीं रहा क्योंकि ऐसा कोई नियम है ही नहीं। अनुच्छेद 75(2) के अनुसार मंत्री (जिसमें, प्रधानमंत्री भी सम्मिलित है) राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद धारण करेंगे (at the pleasure of President) भारत सरकार की सभी कार्रवाई राष्ट्रपति के नाम से होती है (77)। कोई भी विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के उपरांत ही कानून बन सकता है (111)। राष्ट्रपति को कुछ विशिष्ट शक्तियाँ प्रदान की गई है। अनुच्छेद 72 क्षमा दान की शक्ति देता है। अनुच्छेद 123 के अधीन संसद् के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापन की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है।

ऐसी ही व्यवस्था का प्रावधान राज्य स्तर पर भी किया गया है। राज्य के लिए राज्यपाल होगा (153) जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा (155)। राज्यपाल का कार्यकाल पांच वर्ष का है एवं वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा। अनुच्छेद 163 के तहत मंत्री परिषद जिसका प्रधान, मुख्यमंत्री होगी, की सलाह पर राज्यपाल कार्य करेगा। मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल के विवेकानुसार होती है, तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर होगी। मंत्री, जिसमें मुख्यमंत्री भी सम्मिलित है, राज्यपाल के प्रसादपर्यंत अपने पद धारण करेंग। मुख्यमंत्री का भी कार्यकाल 5 वर्ष का नहीं होता तथा यह एक अवधारणा मात्र है।

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