हाल-ए-दिल: 1
दोस्ती की सारी कहावतें अब झूठी लगती हैं,
यह कम्बख़त दुनिया मुझसे रूठी लगती है,
यारा! बाकी सब को आज़मा लिया है मैंने,
यक़ीनन इक तेरी बात हैं जो अनूठी लगती है!
जो मेरे आंसुओं ने तुम्हें माफ़ कर दिया है,
तुम समझते हो कि इन्साफ़ कर दिया है,
असल बात तो तुम अभी तक नहीं समझे,
उन्होंने तुम्हें ख़ुद के ही ख़िलाफ़ कर दिया।
मैं इस दाग़दार चाँद का दीदार क्यों करूँगा,
मैं फूलों की महक का ऐतबार क्यों करूँगा,
मैं अभी इतना भी बेवकूफ नहीं हुआ हूँ,
मैं काममूर्ति पर कृत्रिम शृंगार क्यों करूँगा।
अब मेरी बातों पर ऐतराज़ बहुत होता है,
अब हर कोई मुझ से नाराज़ बहुत होता है,
वे कहते हैं कि मैं बदल गया हूँ, लेकिन,
उनकी आवाज़ में मिजाज़ बहुत होता है।
तेरे बन्धनों ने मुझे ख़ुद से आज़ाद तो किया,
निन्दा ही सही, इसी बहाने मुझे याद तो किया,
मैंने तो तेरी खातिर अपमान सभी ग़लत सहें,
आख़िर तेरे इस संग ने मुझे आबाद तो किया!
मेरी परेशानियों के लिए किसी को वक्त कहाँ है,
अपने स्वार्थ बिना मुझसे कोई अनुरक्त कहाँ है,
फिर भी सारे स्नेह सम्बन्ध मैंने ही तो बिगाड़े है,
मैं कोई भगवान नहीं, मेरा कोई भक्त कहाँ है !
तुमसे ही दिल लगाने का इंतज़ार हमको था,
अपनी पसंद का कुछ तो पिंदार हमको था,
पर अब सिर्फ़ अफ़सोस ही हम करतें हैं कि
ना जाने क्यों तुमसे ऐसा सरोकार हमको था!
तेरे तसव्वुर के साथ तन्हा हमें जीना क़बूल है,
तेरी याद का सुरूर हरदम हमें पीना क़बूल है,
बीते तुम्हारे संग अगर कुछ लम्हें बहार के,
फ़िर फ़िराक़ का यह पतझड़ महीना क़बूल है!
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