हे नारी !
श्रुति पट खोल सुनो हे नारी!
यह संसार सकल तुम्हारा आभारी।
प्रशंसा तुम्हारी कमतर कौन कहेगा,
कहो समुंद्र कैसे कुंड में भरेगा !
सरिस हिम हर हृदय तेरा श्वेता,
आशिक़-आशिक़ा का सा अद्वैता।
पिता की अस्मिता, प्राण पिआरी,
बेटी से बढ़कर तू मां की सहचारी,
भाई हेतु तू स्नेह का पर्यायवाची,
पथ प्रदर्शक तू मानो दिशा प्राची।
पर हित विकृत करती अपनी दशा,
हे नारी ! क्यों न चाहा तूने सुयशा ?
ममता का आंचल सृष्टि पर छाया है,
दृढ़ आत्मविश्वास व तन्वी काया है।
अमीषा भाव से भव को तू तान्या है,
त्याग का कोकिल गीत तू श्रव्या है।
हे नारी ! तुम ही हो सृजन साधन,
बिन तेरे कहां संभव जग जीवन !
मरु वंश को पल्लवी का उपहार हो,
कुल-शरीर पर नुपुर सा शृंगार हो।
श्रद्धा के गुण का तुम प्रत्यक्ष प्रमाण,
तेरे निस्वार्थ कर्मों का नहीं उपमान।
प्रज्ञा-श्री का तुममें वास्तविक वास
सकंद मातृ रूप में सौम्य शौर्य सी श्वास।
साक्षात भवानी तुम धरे मानवी वेष,
तेरी आयुषी गाथा, यह तो मात्र लेश !
Kommentare